| The News Times | चुनार, मिर्जापुर। उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में चुनार तहसील के पास गंगा नदी के तट पर स्थित माँ शीतला धाम अदलपुरा देश के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है। यह मंदिर न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि इसका इतिहास और पौराणिक कथाएँ इसे एक रहस्यमय और पूजनीय स्थान बनाती हैं।
पौराणिक इतिहास और स्थापना
इस प्राचीन मंदिर की स्थापना के पीछे एक चमत्कारी पौराणिक कथा प्रचलित है, जो इसे खास बनाती है:
- स्वयं प्रकट हुईं माता: लोक कथाओं के अनुसार, माँ शीतला देवी की मूर्ति प्रयागराज से लगभग 65 किलोमीटर दूर स्थित कड़े धाम (कौशांबी जनपद) से गंगा नदी के रास्ते बहकर अदलपुरा ग्राम के पास आकर रुकी थी।
- मल्लाहों को स्वप्न: जब यह मूर्ति गंगा के जल में बहकर अदलपुरा के पास किनारे पर आई, तब यहाँ के निवासी मल्लाह (निषाद) समाज के लोगों को रात में स्वप्न आया। स्वप्न में माता ने उन्हें मूर्ति को गंगा से निकालकर स्थापित करने का आदेश दिया।
- मंदिर का निर्माण: मल्लाहों ने माता के आदेश का पालन करते हुए मूर्ति को बाहर निकाला और उसी स्थान पर मंदिर का निर्माण कराया। यही कारण है कि इस मंदिर की पूजा-अर्चना और देखरेख का कार्य सदियों से निषाद समाज के लोग ही करते आ रहे हैं। यह भी माना जाता है कि माता रानी निषाद समाज के लोगों से ही पूजा स्वीकार करती हैं।
महिमा और मान्यताएँ
माँ शीतला को स्वास्थ्य और शीतलता की देवी माना जाता है। इनकी महिमा से जुड़ी प्रमुख बातें निम्नलिखित हैं:
- मनोकामनाएँ पूर्ण: भक्तों का दृढ़ विश्वास है कि अदलपुरा धाम में माँगी गई सभी मुरादें माँ शीतला पूरी करती हैं।
- रोग मुक्ति: माता शीतला को चेचक (माता), दाह ज्वर, पीत ज्वर और अन्य त्वचा रोगों की देवी माना जाता है। कहा जाता है कि इनकी आराधना करने से ये सभी रोग दूर हो जाते हैं।
- मुंडन संस्कार: यह धाम मुंडन संस्कार के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। संतान प्राप्ति या रोग मुक्ति की मन्नत पूरी होने पर दूर-दराज से श्रद्धालु यहाँ आकर अपने बच्चों का मुंडन करवाते हैं।
- मेला और भीड़: साल में दो बार, विशेष रूप से चैत्र माह (मार्च-अप्रैल) में शीतला सप्तमी/अष्टमी पर और सावन माह में यहाँ भव्य मेलों का आयोजन होता है। चैत्र मेले के सोमवार और रविवार को यहाँ लाखों की संख्या में भक्त दर्शन के लिए उमड़ते हैं।
- प्रतीकात्मक स्वरूप: स्कंद पुराण में माता शीतला को गर्दभ (गदहे) पर सवार, हाथों में कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते धारण किए हुए बताया गया है। इन्हें स्वच्छता और स्वास्थ्य की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है।

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