Lok Sabha Election 2024 : क्या पिता से मिली शिकस्त का बदला बेटे से ले पाएंगे माझी?

राष्ट्रीय

Lok Sabha Election 2024 : लोक सभा चुनाव का बिगुल बज चुका है और बिहार में लोकसभा चुनाव का रण सज चुका है। NDA और I.N.D.I.A. दोनों गठबंधनों की तरफ से अपने-अपने उम्मीदवार को चुनावी मैदान में उतार दिया है। पहले चरण में बिहार की गया (Gaya LokSabha) सीट पर भी वोट पड़ने हैं। इस सीट पर कुल 14 उम्मीदवार हैं, लेकिन मुख्य मुकाबला NDA गठबंधन के हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) के संरक्षक जीतन राम मांझी (Jitan Ram Manjhi) और इंडिया गठबंधन के राजद (RJD) उम्मीदवार कुमार सर्वजीत (Kumar Sarvjeet) के बीच माना जा रहा है। गया लोकसभा सीट पर मुकाबला बड़ा दिलचस्प माना जा रहा है। इसके पीछे कारण यह है कि 33 साल पहले कुमार सर्वजीत के पिता राजेश कुमार ने जीतन राम मांझी को हार की धूल चटाई थी। अब लोगों में चर्चा यह कि क्या मांझी पिता से पुरानी हार का बदला बेटे से ले पाएंगे, इस बात पर सभी की निगाहें टिकी हैं।

जानकारी के अनुसार 33 साल पहले कुमार सर्वजीत (Kumar Sarvjeet) के पिता राजेश कुमार (Rajesh Kumar) और जीतन राम मांझी (Jitan Ram Manjhi) के बीच मुकाबला हुआ था। उस चुनाव में राजेश कुमार ने जीतन राम मांझी को करारी शिकस्त दी थी। इस बार राजेश कुमार के बेटे कुमार सर्वजीत और जीतन राम मांझी आमने-सामने है।

इस सीट का राजनीतिक इतिहास :

बता दें कि 1967 में गया सीट को आरक्षित सीट घोषित किया गया था। इससे पूर्व इस सीट पर कांग्रेस (Congress) का कब्जा था। फिर आरक्षित सीट घोषित होने के साथ ही पहली बार 1967 में इस पर कांग्रेस ने ही कब्जा जमाए रखा लेकिन इसके बाद 1971 के चुनाव में सीट जनसंघ के हिस्से चली गई। फिर यहां कुछ-कुछ अंतराल के बाद फेरबदल देखने को मिलता रहा। जनसंघ से यह सीट जनता पार्टी ने छिनी और फिर दो बार इसके बार यहां से कांग्रेस के इम्मीदवार विजयी हुए। इसके बाद यह सीट तीन बार जनता दल के प्रत्याशी ने अपने नाम की। 2009 से आज तक मांझी जाति के उम्मीदवार को ही जीत मिल पाई है।

मांझी का मजदूर से मुख्यमंत्री तक का सफर :

एनडीए की ओर से जीतन राम मांझी मैदान में हैं। मांझी की बात करे तो उन्होंने मजदूरी से अपनी जिंदगी की सफर की फिर डाक विभाग में क्लर्क रहे। राजनीति में आने पर बिहार के मुख्यमंत्री तक बन चुके हैं। वह महादलित मुसहर समाज से आते हैं। मांझी की शिक्षा की बात करे तो 1962 में हाई स्कूल की शिक्षा पूरी करने के बाद 1966 में गया कॉलेज से इतिहास विषय में ग्रेजुएशन की डिग्री हाशिल किए। 1980 में कांग्रेस पार्टी से राजनीतिक में अपना कदम रखा। वे 1980 से अबतक लगभग 8 बार से अधिक अपनी पार्टी भी बदल चुके है। पिछले 4 दशकों में कांग्रेस, आरजेडी और जदयू में मंत्री पद पर रह चुके हैं। आज वह बिहार के राजनीति में महादलितों के बड़े चेहरे के रूप में जाने जाते हैं।

कुमार सर्वजीत कौन हैं?

वहीं महागठबंधन के उम्मीदवार राजद नेता कुमार सर्वजीत को राजनीति विरासत में मिली है. वे पूर्व सांसद राजेश कुमार के बेटे हैं और महागठबंधन सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। कुमार सर्वजीत भी दलित समुदाय के पासवान समाज से आते हैं। इनकी दसवीं तक स्कूली शिक्षा पटना के सेंट एमजी हाई स्कूल से पूरी हुई है। वही इंटरमीडिएट की पढ़ाई गया के महेश सिंह यादव कॉलेज पूरी की है और 2001 में बिरला इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, रांची से बी-टेक किया है। वे बोधगया से बिहार विधानसभा में आरजेडी से विधायक है। कुमार सर्वजीत ने बोधगया विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के प्रतिनिधि के रूप में दो बार चुने गए और 63 वर्षों का रिकॉर्ड भी तोड़ा है।

गया सीट के जातीय समीकरण :

इस सीट पर 17 लाख के करीब मतदाता है। इन मतदाताओं में सबसे बड़ी संख्या मांझी समाज के लोगों की है। जो यहां जीत और हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यहां 2.5 लाख से ज्यादा मांझी मतदाता हैं। इसके बाद यहां 5 लाख के करीब एससी/एसटी वोटरों की संख्या है। अल्पसंख्यकों की संख्या भी यहां बड़ी है। भूमिहार और राजपूत के साथ यादव और वैश्य तो यहां की बड़ी आबादियों में से हैं। सीट आरक्षित है लेकिन हर जाति के वोट को यहां महत्वपूर्ण माना जाता है। यादव 2 लाख और वैश्य समाज के भी 2 लाख वोटर्स हर चुनाव में निर्णायक भूमिका में रहते हैं।

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