योगी सरकार में प्राचीन आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति पर बढ़ा जनता का विश्वास

- पिछली सरकारों द्वारा ध्यान नहीं देने से भारत के ऋषि मुनियों की तपस्या और शोध का परिणाम आयुर्वेद ख़त्म होने की कगार पर थी
- डबल इंजन की सरकार ने प्राचीन चिकित्सा उपचार को भारत में ही नहीं बल्कि विश्व में दिलाई नई पहचान
- कोरोना के दौरान आयुर्वेद ने अपनी उपयोगिता सिद्ध करते हुए लोगों का खोया हुआ विश्वास फिर से जीता
वाराणसी : प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद अपनी खोई प्रतिष्ठा पुनः प्राप्त कर रही है। आयुर्वेद पर पूर्व की सरकारों द्वारा ध्यान नहीं देने से भारत के ऋषि मुनियों की तपस्या और शोध का परिणाम अमृत रूपी आयुर्वेद चिकित्सा ख़त्म होने की कगार पर थी। डबल इंजन की सरकार ने प्राचीन चिकत्सा उपचार को एक बार भारत में ही नहीं बल्कि विश्व में नई पहचान दिलाते हुए कोरोना कॉल में इसकी सार्थकता प्रमाणित कर दी है। वाराणसी में अकेले राजकीय स्नातकोत्तर आयुर्वेद महाविद्यालय एवं चिकित्सालय में 2017 से 2022 तक 5 लाख से अधिक मरीजों ने उपचार कराया है।
आयुर्वेद चिकित्सा ने धीरे-धीरे अपनी खोई प्रतिष्ठा तेजी से प्राप्त करना शुरू कर दिया है। साल दर साल मरीजों का रुझान आयुर्वेद की और बढ़ता जा रहा है। कोरोना के दौरान आयुर्वेद ने अपनी उपयोगिता सिद्ध करते हुए लोगों का खोया हुआ विश्वास फ़िर से जीत लिया है। कोविड के दौरान आयुष काढ़ा इतना कारगार साबित हुआ की पूरी दुनिया में इसकी चर्चा ही नहीं हुई, बल्कि इस्तमाल किया और सराहा। राजकीय स्नातकोत्तर आयुर्वेद महाविद्यालय एवं चिकित्सालय के वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी डॉ अरविन्द कुमार सिंह ने बताया कि आयुर्वेद चिकित्सालय चौकाघाट में हर साल मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। ख़ासकर कोरोना काल में आयुर्वेद के प्रति लोगों का रुझान बढ़ा है। वर्ष 2020 में कोरोना काल के दौरान ओपीडी की संख्या 48,246 थी। आयुर्वेदिक दवाओं का प्रभाव ऐसा रहा कि 2021 कोरोना के काल में मरीजों की संख्या 75,772 पहुंच गई। जो 2022 में एक लाख के पार पहुंच गई। 2017 से 2022 तक 5,26,162 मरीजों ने उपचार कराया।
2017 से 2022 तक राजकीय स्नातकोत्तर आयुर्वेद महाविद्यालय एवं चिकित्सालय के ओपीडी में मरीजों की संख्या के आंकड़े :
वर्ष – ओपीडी में मरीजों संख्या
- 2017 — 79487
- 2018 — 99800
- 2019 — 110199
- 2020 — 48246
- 2021 — 75772
- 2022 — 112658